कोसी भरने की प्रक्रिया

घर परिवार में कोई शुभ काम होने या फिर मन की मुराद पूरी होने पर कोसी भरी जाती है। यूं समझ लीजिए कि कोसी भरते समय थोड़ा बड़े स्तर पर छठ पूजा की जाती है।

कोसी भरने की प्रक्रिया
स्थान विशेष एवं परिस्थिति के अनुसार कोसी (एक प्रकार का मिट्टी का घडा विशेष जिसमे दीप भी बना होता है) भरने की अलग अलग प्रक्रिया हो सकती है।

छ्ठ मे संध्या अर्ध्य देने के पश्चात कोसी भरने की प्रक्रिया कहीं कहीं देखी जाती है जो विशेष कामनाओ की पूर्ति हेतु की जाती है। यह जरूरी नही कि हर छठ व्रती इसे करे। जो महिला (वस्तुत: पुरुष इसे नहीं भर सकते) अपनी विशेष मनोकामना पूर्ति हेतु इसे करने की प्रतिज्ञा करती है वही इसमे भाग लेती है। संध्या अर्ध्य के बाद घर लौट कर या नदी के तट पर रह कर ही कोसी भरी जाती है।

इसमें महिला व्रती ईख को (7 या 14 को आपस मे जोडकर) खडी करती है। कहीं 2 (जोड़ा) या 1 प्रण के अनुसार कोसी भरी जाती है फिर स्थान विशेष को अयपन (चावल और हल्दी से बना घोल) से विशेष चिन्ह अंकित कर दीप जलाती है। चननी (गमछा या विशेष प्रकार का सूती कपड़ा) में छठ में प्रयोग आने वाले फलों तथा अन्य सामान को बांधते है और इसे ईख मे बांध कर ईख को खडा करने मे प्रयोग करते है।

इस कोसी को मिट्टी के हाथी (जिस पर दिये भी बने होते है) के ऊपर रखा जाता है और हाथी के आगे गेहूँ का ढेर भी रखा जाता है तथा कोसी के साथ ही साथ वह सारे चीजें जो चननी मे होते है डाले जाते है और इसके चारो तरफ ढक्कनी (मिट्टी के बरतन) में फल आदि रख कर इस पर दीप जलाया जाता है। उसके बाद स्त्रियाँ अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु क्षेत्रीय गीतों का सामूहिक गान करती है जिससे सूर्यदेव को प्रसन्न किया जा सके। साथ ही साथ सुबह होने का इंतजार भी करती है। फिर अरूणोदय के सूर्य को अर्ध्य दे कर छठ समाप्त करती है।